संविधान दिवस: संसद का जश्न और संविधान के सबसे शक्तिशाली अनुच्छेद

Haryanvi Hustler
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हर साल 26 नवंबर का दिन हमारे देश के लिए बहुत खास होता है। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की आत्मा का जश्न मनाने का दिन है। इसी दिन 1949 में, वर्षों की मेहनत और लगन के बाद, भारत की संविधान सभा ने औपचारिक रूप से हमारे संविधान को अपनाया था। यह एक ऐसा दस्तावेज़ है जो हमें एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करता है। तो चलिए, आज इस ऐतिहासिक दिन के बारे में और गहराई से जानते हैं।

मुख्य बातें

  • संविधान दिवस पर संसद के सेंट्रल हॉल में एक भव्य समारोह का आयोजन किया जाएगा।
  • ✓ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू समारोह की अध्यक्षता करेंगी, जिसमें प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल होंगे।
  • ✓ 26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था।
  • आर्टिकल 368 को संविधान का सबसे शक्तिशाली अनुच्छेद माना जाता है, लेकिन इसकी शक्तियों पर सीमाएं भी हैं।
  • ✓ संविधान का डिजिटल संस्करण नौ नई भाषाओं में लॉन्च किया जाएगा, जिसमें नागरिक ऑनलाइन प्रस्तावना पढ़ सकेंगे।

संसद में भव्य समारोह: एक ऐतिहासिक दिन

इस साल संविधान दिवस के मौके पर संसद भवन के ऐतिहासिक सेंट्रल हॉल में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम सुबह 11:00 बजे शुरू होगा और इसमें देश के शीर्ष संवैधानिक पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि शामिल होंगे। इस भव्य समारोह की अध्यक्षता कोई और नहीं बल्कि हमारी राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू जी करेंगी। उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री राधाकृष्णन, और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला भी मौजूद रहेंगे।

यह कोई नई परंपरा नहीं है। दरअसल, सरकार 2015 से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मना रही है ताकि हम सब अपने संविधान के मूल्यों को याद कर सकें। यह दिन हमें याद दिलाता है कि 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने इसे अपनाया था, हालांकि इसके ज्यादातर प्रावधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुए, जिस दिन भारत एक गणतंत्र बना। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष सभा को संबोधित भी करेंगे, जो इस दिन के महत्व को और भी बढ़ा देता है।

एक साल तक चलेगा 'स्वाभिमान पर्व'

यह सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं है। भारत के संविधान को अपनाए जाने की 75वीं वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए, प्रशासन ने एक साल तक 'स्वाभिमान पर्व' मनाने की तैयारी की है। इसका मतलब है कि आने वाले पूरे साल में, देश भर में संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों को लेकर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। यह एक बेहतरीन पहल है जो नागरिकों को, खासकर युवाओं को, हमारे संविधान से और गहराई से जोड़ेगी।

💡 क्या आप जानते हैं. इस अवसर पर, संविधान का नौ नई भाषाओं में तैयार किया गया डिजिटल संस्करण भी लॉन्च किया जाएगा। इन भाषाओं में मलयालम, मराठी, नेपाली, पंजाबी, बोडो, कश्मीरी, तेलुगु, उड़िया और असमिया शामिल हैं।

नागरिकों की भागीदारी: आप भी बन सकते हैं हिस्सा

सबसे अच्छी बात यह है कि इस आयोजन में आम नागरिकों को भी शामिल होने का मौका दिया गया है। आप भी घर बैठे इस ऐतिहासिक पल का हिस्सा बन सकते हैं। इसके लिए आपको बस mygov. in या constitution75. Market evidence demonstrates that com पर लॉग-इन करना है और राष्ट्रपति के नेतृत्व में संविधान की प्रस्तावना का पाठ करना है। यह एक छोटा सा कदम है, लेकिन यह हमारे लोकतंत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

इसके अलावा, 'हमारा संविधान-हमारा स्वाभिमान' अभियान के तहत राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन क्विज़ और ब्लॉग या निबंध प्रतियोगिताएं भी आयोजित करने की योजना है। यह न केवल जानकारी बढ़ाने का एक मजेदार तरीका है, बल्कि यह हमें हमारे अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में सोचने पर भी मजबूर करता है। देश भर के सभी केंद्रीय मंत्रालय, राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय भी इस दिन को खास बनाने के लिए तमाम कार्यक्रम आयोजित करेंगे।

संविधान की शक्ति: सबसे ताकतवर अनुच्छेद कौन से हैं.

जब हम संविधान की बात करते हैं, तो हमारे मन में अक्सर नियमों और कानूनों का एक संग्रह आता है। लेकिन इसमें कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं जो बेहद शक्तिशाली हैं और हमारे देश की दिशा तय करते हैं। चलिए, इनमें से कुछ सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेदों पर एक नज़र डालते हैं।

आर्टिकल 368: संशोधन की शक्ति और सीमाएं

अगर भारतीय संविधान के सबसे ताकतवर अनुच्छेद की बात की जाए, तो आर्टिकल 368 का नाम सबसे पहले आता है। यह अनुच्छेद हमारी संसद को देश के संविधान में बदलाव करने का अधिकार देता है। सोचिए, यह कितनी बड़ी शक्ति है. समय के साथ समाज बदलता है और ज़रूरतें भी बदलती हैं, इसलिए संविधान में संशोधन की गुंजाइश होना ज़रूरी है।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इस शक्ति पर एक बहुत महत्वपूर्ण सीमा भी है। साल 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में एक फैसला सुनाया, जिसने 'मूल ढांचे का सिद्धांत' (Basic Structure Doctrine) पेश किया। इस सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान के ज़्यादातर नियमों में बदलाव तो कर सकती है, लेकिन वह संविधान के 'मूल ढांचे' को नहीं बदल सकती। इस मूल ढांचे में कानून का राज, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और न्यायिक स्वतंत्रता जैसे सिद्धांत शामिल हैं। यह एक तरह का सुरक्षा कवच है जो हमारे लोकतंत्र की नींव को बचाता है।

संविधान का 'दिल और आत्मा': आर्टिकल 32

संविधान निर्माता डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने आर्टिकल 32 को 'संविधान का दिल और आत्मा' कहा था। और ऐसा उन्होंने क्यों कहा, यह जानना बहुत ज़रूरी है। यह अनुच्छेद हर भारतीय नागरिक को एक असाधारण अधिकार देता है—अगर आपके किसी भी मौलिक अधिकार का हनन होता है, तो आप सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है; यह हमारे अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक है।

जीवन का अधिकार: आर्टिकल 21 का विशाल दायरा

आर्टिकल 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। सुनने में यह बहुत सरल लगता है, लेकिन हमारे सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर इसकी व्याख्या को बहुत बड़ा विस्तार दिया है। आज, इस एक अनुच्छेद में सम्मान से जीने का अधिकार, निजता का अधिकार (Right to Privacy), स्वास्थ्य का अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार और रोजी-रोटी का अधिकार भी शामिल है। यह अनुच्छेद दिखाता है कि हमारा संविधान कितना जीवंत है।

आर्टिकल 356: राष्ट्रपति शासन का प्रावधान

यह भी एक बहुत शक्तिशाली नियम है। आर्टिकल 356 के तहत, अगर किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है, तो केंद्र सरकार उस राज्य सरकार का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है, जिसे हम 'राष्ट्रपति शासन' कहते हैं। यह एक असाधारण शक्ति है जिसका इस्तेमाल बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए ताकि हमारे देश का संघीय ढांचा मज़बूत बना रहे।

Conclusion

तो, संविधान दिवस सिर्फ एक औपचारिक दिन नहीं है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारा देश किन मूल्यों पर खड़ा है। संसद में होने वाला भव्य समारोह और पूरे देश में आयोजित हो रहे कार्यक्रम भारत की लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। आर्टिकल 368 जैसे शक्तिशाली प्रावधानों और केशवानंद भारती मामले जैसे न्यायिक सुरक्षा उपायों के बीच का संतुलन ही हमारे लोकतंत्र को लचीला और मज़बूत बनाता है। यह दिन हमें हमारे संविधान को पढ़ने, समझने और उसके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करता है।

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